Alankar Ki Paribhasha, Bhed अलंकार के उदाहरण | Alankar in Hindi

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हिंदी व्याकरण में अलंकार बहुत हे महत्वपूर्ण टॉपिक है जो सभी परीक्षाओ में पूछा जाता है | आज हम आपको अलंकार क्या होता है ?Alankar Ki Paribhasha अलंकार के भेद (Alankar ke bhed) उदहारण के साथ समझायेंगे जिजसे आप आसानी अलंकार से जुड़े सभी प्रश्नो को आसानी से हल कर सके |

अलंकार – अलंकार शब्द की रचना ‘अलम् + कार’ के योग से हुई है। अलम् का अर्थ शोभा और कार का अर्थ करने वाला, जो शोभा में वृद्धि करता है उसे अलंकार कहते हैं। सुंदरता बढ़ाने के लिए प्रयुक्त होने वाले वे साधन जो सौंदर्य में चार चाँद लगा देते हैं। कविगण कविता रूपी कामिनी की शोभा बढ़ाने हेतु अलंकार नामक साधन का प्रयोग करते हैं। इसीलिए कहागया है – ‘अलंकरोति इति अलंकार ।’

अलंकार की परिभाषा (Alankar Ki Paribhasha)

Table of Contents

परिभाषा अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आभूषण’। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है।

• आचार्य केशवदास के अनुसार भूषण बिन न बिराजहीं कविता, बनिता मित्त ।’

अलंकार के प्रकार (Alankar in Hindi)

अलंकार के प्रकार-काव्य में कभी अलग-अलग शब्दों के प्रयोग से सौंदर्य में वृद्धि की जाती है तो कभी अर्थ में चमत्कार पैदा करके इस आधार पर अलंकार के दो भेद होते हैं –

१. शब्दालंकार

२. अर्थालंकार

अर्थालंकार की परिभाषा और भेद


“अर्थालंकार” एक संस्कृत शब्द है जो अंग्रेजी में “figure of speech” के रूप में अनुवाद किया जा सकता है। यह भाषा में सौंदर्य और समृद्धि जोड़ने के लिए भाषाई उपकरण या सजावटों का उपयोग करने का एक तरीका है। अर्थालंकार का महत्व कविता, साहित्य और अलंकार में होता है, जो संवाद की सौंदर्यशास्त्रीय और अभिव्यक्तिशील गुणों को बढ़ाता है। इसके प्रमुख भेद हैं।

Alankar

1. उपमा अलंकार

2. रूपक अलंकार

3. उत्प्रेक्षा अलंकार

4. विभावना अलंकार

5. अतिशयोक्ति अलंकार

6. मानवीकरण अलंकार

7. अन्योक्ति अलंकार

8. भ्रान्तिमान अलंकार

9. सन्देह अलंकार

उपमा अलंकार की परिभाषा,भेद और उदाहऱण (Upma Alankar ki Paribhasa)

जहां एक वस्तु या प्राणी की तुलना अत्यंत सादृश्य के कारण प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।

उपमा अलंकार के चार तत्व होते हैं –

a. उपमेय-जिसकी उपमा दी जाए

b. उपमान– जिससे उपमा दी जाए

C. साधारण धर्म-उपमेय तथा उपमान में पाया जाने वाला परस्पर समान गुण

d. वाचक शब्द– जिसके द्वारा उपमान और उपमेय में समानता दिखाई जाती है

Alankar ke Udaharan

जैसे- > मुख चन्द्रमा सा सुंदर है।

1. उपमेय जिसकी तुलना की जाय जाए। जैसे- मुख चन्द्रमा के समान सुंदर है। इस उदाहरण में मुख उपमेय है।

II उपमान जिससे तुलना की जाय जाए। उपर्युक्त उदाहरण में चन्द्रमा उपमान है।

III. साधारण धर्म उपमेय और उपमान में विद्यमान समान गुण या प्रकृति को साधारण धर्म कहते है। ऊपर दिए गए उदाहरण में सुंदर साधारण धर्म है

iv. वाचक शब्द वाचक शब्द वह शब्द होता है जिसके द्वारा उपमान और उपमेय में समानता दिखाई जाती है। जैसे- सा पंक्ति में ‘सा’ वाचक शब्द है।

रूपक अलंकार की परिभाषा,भेद और उदाहरण (Rupak Alankar ki Paribhasa)

जहां गुण की अत्यन्त समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोपन हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

जैसे- > गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे।

( पंक्ति में पेरों को ही कमल बताया गया है। ‘पैरों’ उपमेय पर ‘कमल’ है।)

> शशि-मुख पर घूँघट डाले अंचल में दीप छिपाये।

(ऊपर दिए गए वाक्य में आप देख सकते हैं कि मुख ( उपमेय) पर शशि यानी चन्द्रमा (उपमान) का आरोप है।)

> मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बड़े अनेक।

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा (Utpreksha Alankar ki Paribhasa)

जब उपमेय में उपमान की संभावना की जाये तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

“सूरज कितनी भी चमक ले, मेरे दिल का तारा तो वही है।”

यहां, “मेरे दिल का तारा” अंश को उत्प्रेक्षित करके उसे अधिक महत्वपूर्ण बनाया गया है। इसके माध्यम से यह अभिव्यक्ति कर रहा है कि सूरज की चमक चाहे जैसी भी हो, लेकिन उसके दिल का तारा अद्वितीय और प्रमुख है। इससे अद्वितीयता का अच्छा उदाहरण है जिससे भाषा में सुंदरता और अर्थ की गहराई बढ़ती है।

> लता भवन ते प्रकट भे, तेहि अवसर दोउ भाय। मनु निकसे जुग बिमल बिधु, जलद पटल बिलगाय।।

विभावना अलंकार की परिभाषा

जहां पर कारण के बिना ही कार्य की उत्पत्ति हो जाये वहां विभावना अलंकार होता है।

जैसे-> मूक होय वाचाल पंगु चढ़े गिरिवर गहन। जासु कृपा सु दयाल द्रबहु सकल कलिमलि दहन ||

(जो गूंगा है वह भी बहुत अधिक बोलता है, जो लंगड़ा है वह पर्वत चढ़ जाता है जब प्रभु की कृपा होती है। तो यहाँ पर कारण नहीं है फिर भी कार्य पूर्ण हो रहे)

अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

“अतिशयोक्ति” एक अर्थालंकार है जो अधिमानता या अत्यधिक आलंबित भाषा का उपयोग करके विशेषता को प्रकट करने का एक तरीका है। इसमें व्यक्ति या वस्तु की महत्ता या विशेषता को बढ़ावा देने के लिए अधिभूत भाषा का उपयोग किया जाता है।

उदाहरण: “उसकी हंसी से ही फूलों को भी शर्म आ जाए, उसके मुस्कान में बसा है सभी रंग गुलजार के।”

यहां, “उसकी हंसी से ही फूलों को भी शर्म आ जाए” में अतिशयोक्ति है। इसमें हंसी को इतना महत्वपूर्ण बनाया गया है कि फूल भी उसके सामंजस्य में शर्मिंदा हो जाएं। इससे यह अभिव्यक्ति कर रही है कि उसकी हंसी का प्रभाव इतना अद्वितीय और प्रभावशाली है कि यह आसपास के भूतपूर्व भूतगम्य भी उससे शर्मिंदा हो सकते हैं।

जैसे –

> हनुमान की पूँछ में लगन न पायी आगि सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।।

(यहाँ पर हनुमान की पूँछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई हैं।)

मानवीकरण अलंकार क्या होता है ?

जहाँ प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।

“मानवीकरण” एक अलंकार है जो किसी विशेष गुण, लक्षण, या विशेषता को मानव गुणों या विशेषताओं के साथ जोड़ने का उपयोग करके भाषा को सौंदर्यपूर्ण बनाने का कारण करता है। इससे भाषा में अधिक संवेदनशीलता और सहानुभूति उत्पन्न होती है।

उदाहरण: “सूरज की मुस्कान में बसी शांति, चाँदनी की बातों में छुपा रहस्य, हवा की बहने में बसी स्वतंत्रता, और पृथ्वी की गोदी में समाहित सकारात्मकता।”

इस उदाहरण में, सूरज, चाँदनी, हवा, और पृथ्वी को मानव गुणों या विशेषताओं के साथ जोड़कर भाषा को सुंदरता और सहानुभूति से भरा बनाया गया है। इससे प्रकृति तत्वों को मानव स्वभाव से जोड़ने से भाषा में एक नया और सुंदर परिरूप हो रहा है।

सन्देह अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

जहाँ अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी रहे तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है।

“सन्देह” अलंकार एक अर्थालंकार है जो किसी वाक्य, पंक्ति, या शेर में अनिश्चितता या संदेह उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। इससे पाठक या श्रोता में कुछ संविदानशीलता या उत्सुकता उत्पन्न होती है, जिससे भाषा को रहस्यमय और रोचक बनाया जाता है।

उदाहरण: “स्वप्न या सत्य, जाने क्या है यह रात की बात, चाँदनी में छुपा है कोई राज, कहानी में कौन सा सच?”

इस उदाहरण में, “स्वप्न या सत्य” और “चाँदनी में छुपा है कोई राज” के माध्यम से सन्देह उत्पन्न हो रहा है। पाठक को यह विचार करने पर मजबूर कर रहा है कि क्या यह वाक्य स्वप्न हैं या सच। इससे भाषा में रहस्यमय और संविदानशीलता की भावना उत्पन्न हो रही है।

भ्रान्तिमान अलंकार

जहाँ समानता के कारण एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो, वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है।

“भ्रान्तिमान” अलंकार वह होता है जिसमें कोई शब्द या वाक्यांश किसी अन्य अर्थ की ओर संकेत करता है जो पठक या श्रोता को गुमराह कर सकता है या जिससे उलझाव उत्पन्न होता है। इससे भाषा में रहस्यमयता और रोचकता बढ़ती है।

उदाहरण: “बूंदें गिराईं बादलों की मुस्कान में, सपने में कुछ कह गईं सितारों की भी जुबान में।”

इस उदाहरण में, “बूंदें गिराईं बादलों की मुस्कान में” में भ्रान्तिमान अलंकार है। यहां, बूंदें बादलों की मुस्कान में गिराई जा रही हैं, जिससे भाषा में रहस्यमय और विचित्रता का आभास होता है, क्योंकि बादलों की मुस्कान वास्तविक रूप से होने वाली चीज़ नहीं हैं।

अन्योक्ति अलंकार क्या होता है ?

“अन्योक्ति” अलंकार एक अर्थालंकार है जिसमें कोई शब्द या वाक्यांश दो से अधिक अर्थों में प्रयुक्त होता है और वाक्य को रूपांतरित करने में सहायक होता है। इससे भाषा में विविधता और रस उत्पन्न होता है।

उदाहरण: “सितारों में चमक, आँखों में तेरा ख्वाब है, सुन ले तू ये दिल का इज़हार, इसे कहते हैं मोहब्बत है।”

इस उदाहरण में, “सितारों में चमक” का दोहरा अर्थ है – एक वही चमक जो सितारों में है, और एक उस व्यक्ति की चमक जो किसी के आँखों में है। इससे भाषा में विविधता बनी रहती है और श्रोता को दोहरा अर्थ का आनंद लेने का अवसर मिलता है।

जैसे-

माली आवत देख के, कलियाँ करे पूकार ।

फूल – फूल चुन लिए काल्हे हमारी बार । ।

शब्दालंकार क्या होता है ? उदाहरण सहित (Shabd Alankar ke bhed)

शब्दालंकार जहां अलंकार का सौन्दर्य शब्द में निहित हो वहां शब्दालंकार होता है | शब्दालंकार चार प्रकार के होते है |

A. अनुप्रास अलंकार

B. यमक अलंकार

C. श्लेष अलंकार

D. वक्रोक्ति अलंकार

1.अनुप्रास अलंकार की परिभाषा और प्रकार (Anuprash Alankar Ke Bhed)

जहां पर किसी वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

जैसे-

“मिलते नहीं सहज तारे रहनुमा, मुश्किल से मिलता है सहज सफलता।”

इस उदाहरण में, “मिलते नहीं” और “मुश्किल से” में “म” ध्वनि से शुरुआत हो रही है, जो अनुप्रास अलंकार को उत्पन्न करता है। इससे वाक्य में एक सुरीला और मेलोदिक ध्वनि का मिलन होता है।

अनुप्रास अलंकार को पांच भेद में विभाजित किया गया है ।

1. छेकानुप्रास अलंकार

2. वृत्यानुप्रास अलंकार

3. लाटानुप्रास अलंकार

4. अन्त्यानुप्रास अलंकार

5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार

छेकानुप्रास की परिभाषा

जहां अनेक व्यंजनों की, स्वरूप और क्रम से एक बार आवृत्ति होती है, वहाँ छेकानुप्रास होता है।

वृत्त्यानुप्रास की परिभाषा और उदाहरण

जब किसी काव्य पंक्ति में किसी वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हो (दो से अधिक बार) तो वहाँ वृत्यानुप्रास होता है।

जैसे > सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै ।

अन्त्यानुप्रास

जहां पदांत में एक ही स्वर और एक ही व्यंजन की आवृत्ति हो वहाँ अन्त्यानुप्रास होता है।

जैसे-रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाये पर वचन न जाई ।

श्रुत्यानुप्रास

जहां किसी एक ही स्थान से जैसे कंठ तालू आदि से उच्चरित होने वाले वर्णों की आवृत्ति हो वह श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।

जैसे -तुलसीदास सीदत निसिदिन देखत तुम्हारी निठुराई

लाटानुप्रास

जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवृत्ति उसी अर्थ में, पर तात्पर्य या अन्वय में भेद हो तो वहां लाटानुप्रास होता है।

जैसे-

राम हृदय जाकर नहीं

विपति सुमंगल ताहि ।

राम हृदय जाके नहीं बिपति सुमंगल ताहि ।।

2.यमक अलंकार की परिभाषा

यमक अलंकार जहां एक या एक से अधिक शब्द एक से अधिक बार आये और हर बार अर्थ अलग अलग हो वहाँ पर यमक अलंकार होता है ।

जैसे-

“यमक” अलंकार एक अर्थालंकार है जिसमें कविता, प्रोस, या अन्य रचना में दो समानार्थक शब्दों का समाहार या पुनरावृत्ति होती है। इससे भाषा में रस, सुन्दरता, और प्रभाव बढ़ता है।

उदाहरण के लिए: “चंदनी रातें, सोने यादें, चमकते दिन, सपने रातें।”

यहां, “रातें” और “यादें” में यमक हो रहा है, क्योंकि ये दोनों समानार्थक हैं और उनका समाहार हो रहा है। इससे रचना में शब्दों का सुन्दर समाहार होता है जो सुन्दरता और चित्रकला को बढ़ाता है।

श्लेष अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

श्लेष का अर्थ है चिपका हुआ। जहां एक शब्द में अनेक अर्थ छिपे हों अर्थात् जब वाक्य में एक शब्द केवल एक बार आए और उस शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ निकलें तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

जैसे

रहिमन पानी राखियै बिन पानी सब सून।

पानी गये न उबरै मोती मानुस चून

3 यमक अलंकार और श्लेष अलंकार में अंतर

यमक अलंकार और श्लेष अलंकार दोनों ही अर्थालंकार हैं, लेकिन इनमें अंतर है:

  1. यमक अलंकार:
    1. यमक अलंकार में दो समानार्थक शब्दों का समाहार होता है।
    2. इसमें शब्दों का संयोजन होता है जिससे रस, सुन्दरता, और प्रभाव उत्पन्न होता है।
    3. उदाहरण: “रातें यादें, सपने साथ लाएं।”
  2. श्लेष अलंकार:
    1. श्लेष अलंकार में एक ही शब्द या वाक्यांश का दो अर्थ होते हैं, जो अनुभूति या भावना को बढ़ाता है।
    2. इसमें शब्दों का उपयोग ऐसे होता है कि उनमें सामंजस्य और विरोध का संयोजन होता है।
    3. उदाहरण: “तेरी मुस्कान में है वो राज़, जो मेरे दिल को कहना चाहता है।”

संक्षेप में, यमक अलंकार में समानार्थक शब्दों का संयोजन होता है, जबकि श्लेष अलंकार में शब्दों का एक ही शब्द या वाक्यांश के दो भिन्न अर्थ होते हैं।

4 वक्रोक्ति अलंकार

जहां किसी बात पर वक्ता और श्रोता की किसी उक्ति के सम्बन्ध में, अर्थ कल्पना में भिन्नता का आभास हो, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।

जैसे

‘को तुम हो? इत आये कहाँ ? घनस्याम हैं, तो कितहूँ बरसो।’

(भगवन कृष्ण द्वारा अपना नाम राधा जी को बताया गया, घनस्याम नाम को राधा जी बादल समझती और कहती है कि बरसो कही जा कर)

• मैं सुकुमारि, नाथ बन जोगू तुमहिं उचित तप, मो कह भोगू ।। ‘

• ‘राम लखन सिय कहँ बन दीन्हा। पठै अमरपुर पति हित कीन्हा ।।’

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Alankar Ki Paribhasha

अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आभूषण’। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है।

अनुप्रास अलंकार की परिभाषा (Anupras Alankar Ki Paribhasha)

जहां पर किसी वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

Alankar Ke bhed

अलंकार के दो भेद होते हैं –
१. शब्दालंकार
२. अर्थालंकार

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